हरदा। सोमवार 1 जुलाई से देश में तीन नए आपराधिक कानून लागू होंगे। पुलिस अधीक्षक श्री अभिनव चौकसे ने बताया कि तीनों नए कानून वर्तमान में लागू ब्रिटिश काल के भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे। यह नए कानून के नाम भारतीय न्याय संहिता (बी.एन.एस.), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बी.एन.एस.एस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बी.एस.ए.) हैं। इसी साल फरवरी में इन तीनों आपराधिक कानूनों को लेकर गजट नोटिफिकेशन जारी किया गया था। इन कानून के लागू होने से कई बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे।
दुष्कर्म के दोषियों को फांसी तक की सजा
नए आपराधिक कानून के अंतर्गत नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने वाले दोषियों को फांसी की सजा तक दी जा सकती है। वहीं नाबालिग के साथ गैंगरेप करने को नए अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इस कानून के अनुसार राजद्रोह को अब अपराध नहीं माना जाएगा। इन नए कानून में मॉब लिंचिंग के दोषियों को को भी सजा के प्रावधान हैं। जब 5 या उससे ज्यादा लोग जाति या समुदाय के आधार पर किसी की हत्या करते हैं तो उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी।
भारतीय न्याय संहिता (बी.एन.एस.)
भारतीय न्याय संहिता (बी.एन.एस.) 163 साल पुराने आईपीसी की जगह लेगा। इस कानून के सेक्शन 4 के अंतर्गत सजा के तौर पर दोषी को सामाजिक सेवा करनी होगी। शादी का धोखा देकर यौन संबंध बनाने पर 10 साल की सजा और जुर्माना का प्रावधान है। साथ ही नौकरी या अपनी पहचान छिपाकर शादी के लिए धोखा देने पर भी सजा होगी। संगठित अपराध जैसे अपहरण, डकैती, गाड़ी की चोरी, कॉन्ट्रेक्ट किलिंग, आर्थिक अपराध, साइबर क्राइम के लिए भी कड़े सजा का प्रावधान किया गया है। भारतीय न्याय संहिता में राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाले काम पर भी कड़ी सजा दी जायेगी।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बी.एन.एस.एस.)
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 1973 के सीआरपीसी की जगह लेगा। इस कानून के जरिए प्रक्रियात्मक कानून में महत्वपूर्ण बदलाव किये गए हैं। इस कानून के मुताबिक अगर किसी को पहली बार अपराधी माना गया तो वह अपने अपराध की अधिकतम सजा का एक तिहाई पूरा करने के बाद जमानत हासिल कर सकता है। ऐसे में विचाराधीन कैदियों के लिए तुरंत जमानत पाना, मुश्किल हो जाएगा। हालांकि, यह कानून आजीवन कारावास की सजा पाने वाले अपराधियों पर लागू नहीं होगा. इस कानून के अंतर्गत कम से कम सात साल की कैद की सजा वाले अपराधों के लिए फोरेंसिक जांच अब अनिवार्य हो जाएगा, फोरेंसिक एक्सपर्ट्स अपराध वाली जगह से सबूतों को इकट्ठा और रिकॉर्ड करेंगे. वहीं अगर किसी राज्य में फोरेंसिक सुविधा का अभाव होने पर दूसरे राज्य में इस सुविधा का इस्तेमाल किया जाएगा।