इस कार्यक्रम का संचालन जगदीश टेमले शिक्षक के द्वारा किया जा रहा है
खिरकिया। क्षेत्र में गुरूवार से गणगौर उत्सव की शुरुआत हो गई है। देवा ढाबा के संचालक प्रजापति परिवार द्वारा रनुबाई पावनी बुलाई है। गुरूवार से रोजाना रात में विभिन्न मंडल झालरा की प्रस्तुति दे रहे है। आयोजक परिवार के देवा लता प्रजापति ने बताया कि आसपास की भजन मंडलियां हास-परिहास से भरपूर स्वांग, नृत्य व नन्हे मुन्ने कलाकारो द्वारा झालरे की प्रस्तुति दी जा रही है। दिन शुक्रवार रात्रि को भजन मंडल, इटावा इटारसी अबगांखुर्द, ग्राम चैकडी दमदमा, रेल्वा, छीपाबड सारसूद मंडलियो द्वारा माता रनुबाई के भजनो की सुदंर सुदंर प्रस्तुती दी गई। उत्सव का समापन 10 मई को विसर्जन के साथ होना है। इस कार्यक्रम का संचालन जगदीश टेमले शिक्षक के द्वारा किया जा रहा है। आपको बता दे गणगौर पूजा राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश सहित भारत के उत्तरी प्रांतों का लोकप्रिय पर्व है। विवाहित महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए यह पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन को प्रेम का जीवंत प्रतीक माना जाता है। इस दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती को और देवी पार्वती ने संपूर्ण नारी समाज को सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। जो सुहागिनें गणगौर का व्रत रखती है और शिव-पार्वती की पूजा करती हैं, उनके पति की उम्र लंबी हो जाती है। वहीं जो कुंवारी कन्याएं गणगौर का व्रत रखती हैं, उन्हें आदर्श जीवन-साथी का वरदान प्राप्त होता है। इस पर्व को सोलह दिनों तक मनाया जाता है। मिट्टी से ईशर और गौरा का निर्माण करके पूजा की जाती है। गणगौर का पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को मनाया जाता है। माना जाता है कि गौरा अपने पीहर आती है, तो पीछे-पीछे ईशर भी उसे लेने आ जाते हैं और फिर चैत्र शुक्ल द्वितीया तथा तृतीया को गौरा को अपनी ससुराल के लिए विदा कर दिया जाता है। कहीं-कहीं इस दिन को भगवान शिव और पार्वती के प्रेम और विवाहोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। कई महीनों के अलगाव के बाद शिव और पार्वती फिर एक साथ आते हैं। विवाहित महिलाएं पति की लंबी उम्र और वैवाहिक खुशी के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं, तो अविवाहित युवतियां आदर्श पति की प्राप्ति के लिए।