संत तीर्थ रूप होते हैं -स्वाध्यायी मयंक तातेड….।
खिरकिया :- फाल्गुनी पर्व आराधना के अवसर पर बुरहानपुर से पधारे वरिष्ठ स्वाध्यायी अरुण लुंकड़ ने समता भवन खिरकिया में कहां कि-यदि हमें जीवन में आमूल चूल परिवर्तन लाना है तो हमें आगम की स्वाध्याय करनी पड़ेगी। आगम से ही हमारा सम्यक ज्ञान बढ़ता है ।आगम को पढ़कर उसका आचरण करना चाहिए। आगम ही तीर्थंकर भगवान की वाणी है। आगम की स्वाध्यायी करने से कर्मों की निर्जरा भी होती है। स्वाध्याय करना एक प्रकार का तप है ।आगम की महिमा को जिसने समझ लिया उसका जहाज कभी नहीं डूब सकता। उन्होंने आगे कहा कि-हमारे मन के अंदर इच्छाओं का भंडार भरा पड़ा है। इच्छाएं आकाश के समान अनंत हैं ।सभी इच्छाओं की पूर्ति नहीं हो सकती ।मन चंचल है। मन की चंचलता के कारण हमारा भव बिगड़ सकता है और मन को नियंत्रित करके भव को सुधारा भी जा सकता है। चंचल मन को धर्म का अवलंबन लेकर एवं सरल सहज बनकर नियंत्रित किया जा सकता है।
इसके पूर्व इंदौर से पधारे स्वाध्यायी मयंक तातेड ने कहा कि- तीर्थंकर भगवान की वाणी सुनकर जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल जाती है ।संत तीर्थ रूप होते हैं ।उनकी वाणी सुनने से कान पवित्र हो जाते हैं और दर्शन करने से कर्मों की महान निर्जरा होती है। संत दर्शन से, उनकी वाणी सुनने से हमारी पुण्य वाणी भी बढ़ती है। उन्होंने आगे कहा कि- मनुष्य जन्म अनमोल है। इसका अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है। मोक्ष को प्राप्त करने के लिए हमें आगम का अवलंबन लेना होगा तभी हमारा मानव जीवन सार्थक होगा। अंत में इंदौर से पधारी स्वाध्यायी, मोटिवेशनल ट्रेनर मोना तातेड ने आचार्य भगवन द्वारा प्रदत आयाम की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा कि -हमारा जीवन अनुशासित होना चाहिए। हमें किसी भी प्रकार के विवाद से बचना चाहिए। विवाद से बचने के लिए हमें उसे वक्त मौन रहना चाहिए। विवाद तभी होता है जब दोनों पक्ष क्रोध में हो। आजकल लोग छोटी-छोटी बातों पर विवाद कर लेते हैं ।हमें सबके साथ मैत्री भाव रखना चाहिए।
महत्तम ओलंपियाड की ऑनलाइन परीक्षा में रौनक सांड का सम्मान पंकज हेमचंद भंडारी परिवार द्वारा किया गया इस अवसर पर अशोक सांड,मोहन सोनी,विजेंद्र राजपूत,संगीता भंडारी,आशीष समदडिया, रत्ना समदडिया,प्रियंका भंडारी आदि उपस्थित थे।साथ ही कई श्रावक श्राविकाओं ने उपवास येकासन के साथ पौषध एवं रात्रि संवर कर दिवस की सार्थकता सिद्ध किया।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रावक -श्राविकाएं एवं श्रद्धाशील उपासक उपस्थित थे।